तीन दशक लंबे करियर में दीप्ति ने दर्जनों ऐसी फिल्में की, जो हिंदी सिनेमा के लिए मील का पत्थर साबित हुईं. (इंस्टाग्राम)
पंजाब के अमृतसर में जन्मीं दीप्ति के चेहरे पर गज़ब की सादगी है और उनकी यही सादगी उनकी फिल्मों में उनके कला के रुप में सामने आती थी.
- News18Hindi
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February 3, 2021, 5:51 AM IST
दीप्ति ने 1978 में आई फिल्म ‘जुनून’ से अपनी फिल्मी करियर की शुरुआत की थी. इस फिल्म को इस साल बेस्ट फिल्म का अवॉर्ड भी मिला था. इसके बाद साल 1981 में आई फिल्म ‘चश्मे बद्दूर’ से दीप्ति की हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अलग पहचान बन गई थी. अपने तीन दशक लंबे करियर में दीप्ति ने दर्जनों ऐसी फिल्में की, जो हिंदी सिनेमा के लिए मील का पत्थर साबित हुईं. इनमें ‘एक बार फिर’, ‘अनकही’, ‘बवंडर, ‘लीला, ‘फिराक’ जैसी कई फिल्में शामिल हैं.
दीप्ति अपने फिल्मी करियर के अलावा अपनी निजी ज़िंदगी को लेकर भी काफी सुर्खियों में रहीं. उन्होंने 1985 में फिल्म डायरेक्टर प्रकाश झा से शादी की, लेकिन 2002 में उनका तलाक हो गया. दीप्ति नवल (Deepti Naval) और फारुख शेख ने 80 के दशक में ‘चश्मे बद्दूर’, ‘किसी से न कहना’, ‘साथ-साथ’ जैसी कई फिल्मों में साथ काम किया था. उनकी जोड़ी को दर्शक बेहद पसंद करते थे. कहा जाता था कि दोनों को एक-दूसरे से खास लगाव है. दोनों की नज़दीकियों के किस्से भी सामने आते थे, लेकिन इन बातों में कितनी सच्चाई है, यह कहा नहीं जा सकता.
प्रकाश झा (Prakash Jha) से तलाक के बाद दीप्ति की ज़िंदगी में प्रख्यात शास्त्रीय गायक पंडित जसराज के बेटे विनोद पंडित आए. कहा जाता है कि उनकी सगाई भी हो गई थी, लेकिन शादी से पहले ही विनोद पंडित का देहांत हो गया और इस तरह दीप्ति एक बार फिर अकेली रह गईं. पिछले साल दीप्ति एक बार फिर तब चर्चा में आई थीं, जब अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के बाद सोशल मीडिया पर उन्होंने ‘ब्लैक विंड’ नामक कविता साझा कर बताया था कि एक समय वह भी डिप्रेशन से जूझ रही थीं.सोशल मीडिया पर उन्होंने लिखा था, ”इन संकट के दिनों में अपने दिमाग में बहुत कुछ चल रहा है. कभी दिमाग एकदम शांत हो जाता है तो कभी विकृत. आज के माहौल को देखते हुए मुझे लगा के मुझे भी एक कविता लोगों के बीच साझा करनी चाहिए. यह कविता मैंने तब लिखी थी जब मैं भी अवसाद, चिंता और आत्महत्या कर लेने वाले विचारों जैसी परेशानियों से जूझ रही थी. या फिर यूं कहें कि लड़ रही थी.”
आपको बता दें कि दीप्ति ने यह कविता 28 जुलाई 1991 में लिखी थी. कुछ समय पहले एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि 90 के दशक में उन्हें फिल्मों में काम मिलना बहुत कम हो गया था इसलिए उनके दिमाग में बहुत नकारात्मक विचार आते थे.